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फ़रवरी की निर्वाचित पुस्तक
निर्वाचित पुस्तक

सप्ताह की पुस्तक
सप्ताह की पुस्तक

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उपयोगितावाद जॉन स्टुअर्ट मिल द्वारा रचित दार्शनिक ग्रंथ है जिसका प्रकाशन सन् १९२४ ई॰ में मेरठ के ज्ञानप्रकाश मंदिर द्वारा किया गया था।


"इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध तत्ववेत्ता स्टुअर्ट मिल ने अपनी संसार-प्रसिद्ध पुस्तक Utilitarianism अर्थात् उपयोगितावाद में इस ही विषय पर विचार किया है। आचार-शास्त्र का मूल अधार क्या होना चाहिये? कोई काम करना ठीक है या नहीं?-यह बात किस प्रकार निश्चित करनी चाहिये।मिल उपयोगितावादी थी। उस का विचार था कि जिस काम से जितने अधिक आदमियों का हित होता है वह उतना ही अधिक अच्छा है। इस सिद्धान्त को इस पुस्तक में बहुत अच्छी तरह प्रमाणित किया गया है। इस पुस्तक के पढ़ने से मालूम होगा कि इस सिद्धान्त की पुष्टि में मिल ने जिन दलीलों या युक्तियों से काम लिया है वे बहुत प्रबल तथा अकाट्य हैं।..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
पूर्ण पुस्तकें

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हिन्द स्वराज, महात्मा गाँधी की पहली पुस्तक है जिसमें उन्होंने अपने विचारों को सुव्यवस्थित रूप दिया है। दक्षिण अफ्रीकाके भारतीय लोगोंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए सतत लड़ते हुए गांधीजी १९०९ में लंदन गये थे। वहां कई क्रांतिकारी स्वराज्यप्रेमी भारतीय नवयुवक उन्हें मिले। उनसे गांधीजीकी जो बातचीत हुई उसीका सार गांधीजीने एक काल्पनिक संवादमें ग्रथित किया है। इस संवादमें गांधीजीके उस समयके महत्त्वके सब विचार आ जाते हैं। किताबके बारेमें गांधीजी ने स्वयं कहा है कि "मेरी यह छोटीसी किताब इतनी निर्दोष है कि बच्चोंके हाथमें भी यह दी जा सकती है। यह किताब द्वेषधर्मकी जगह प्रेमधर्म सिखाती है; हिंसाकी जगह आत्म-बलिदानको स्थापित करती है; और पशुबलके खिलाफ टक्कर लेनेके लिए आत्मबलको खड़ा करती है।" ( हिन्द स्वराज पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 — 2 फ़रवरी 1960) हिंदी भाषा के उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
  2. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
  3. देवांगना, आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का उपन्यास
  4. धर्म के नाम पर, धर्म के नाम पर की जाने वाली कुरीतियों पर प्रहार करता निबंध-संग्रह
  5. मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानी संग्रह

आज का पाठ

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उपन्यास का विषय प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।

"उपन्यास का क्षेत्र, अपने विषय के लिहाज से, दूसरी ललित कलाओं से कहीं ज्यादा विस्तृत है। वाल्टर बेसेंट ने इस विषय पर इन शब्दों में विचार प्रकट किये हैं-
'उपन्यास के विषय का विस्तार मानव चरित्र से किसी कदर कम नहीं है। उसका सम्बन्ध अपने चरित्रों के कर्म और विचार, उनका देवत्व और पशुत्व, उनके उत्कर्ष और अपकर्ष से है। मनोभाव के विभिन्न रूप और भिन्न-भिन्न दशाओं में उनका विकास उपन्यास के मुख्य विषय हैं।'..."(पूरा पढ़ें)


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