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  • हि धी 5 र आगे के चारो पद भी इसी प्रकार से गाए जायेंगे । ​( पृष्ठ १०० ) सिन्ध भैरवी--तीन ताल स्थायी mr || स रे स स । ध नि ध प ध ---- नि नि । म रु...
    ५४१ B (२,०८४ शब्द) - १८:१९, १७ सितम्बर २०२१
  • त, थ, द, ध, न । प, फ, ब, भ, म । य, र, ल, व । श,ष,स, । इन व्यंजनों में उच्चारण की सुगमता के लिए '' मिला दिया गया है। जब व्यंजनों में कोई स्वर नहीं मिला...
    ४०७ B (६,२२० शब्द) - ०८:१३, ७ मई २०२१
  • तारासिंह––(जोर से हँस कर) ! अब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि बेहया नानक तू ही है और शायद अपनी पतिव्रता की आमदनी गिनने के लिए यहाँ पहुँचा है। अच्छा तो...
    ३८५ B (१,७८२ शब्द) - १३:५९, १५ दिसम्बर २०२०
  • नं० २, ७, ९ और १० जैनधर्म के तत्व निरूपण पर हैं और साहित्य-कोटि में नहीं सकतीं। नं० ६ योग की पुस्तक है। नं० ३ और नं० ४ केवल नोटिस मात्र है; विषयों...
    ८९८ B (५,३४४ शब्द) - ०३:००, २१ सितम्बर २०२४
  • मुदकमन्तश्चैत्सीद् यावद् यावदुदकं समवायात्---तावत् तावदन्ववसर्पासि इति स तावत् तावदेवान्ववससर्प । तदप्येतदुत्तरस्य गिरेर्मनोरवसर्पणमिति । (8.1) श्रद्धा...
    २७६ B (१,६०० शब्द) - ०३:३५, २७ जुलाई २०२३
  • अभिमानी मूरख हौ भारी॥ जब ऐसे दीन हो इन्द्र ने स्तुति करी तब श्रीकृष्णचंद दयाल बोले कि अब तो तू कामधेनु के साथ आया इससे तेरा अपराध क्षमा किया, पर फिर गर्व...
    ३९३ B (३८५ शब्द) - १६:२८, २ दिसम्बर २०२१
  • प्रस्तुत की जा रही है। मैं नैशनल लाइब्रेरी कलकत्ता के प्रति अपना आभार प्रकट करता । उन समस्त संस्थानों, पुस्तकालयों, विभागों, संस्थाओं, लेखकों, संपादकों, अधिकारियों...
    ४६३ B (१,०७७ शब्द) - ०४:३७, २१ मई २०२१
  • करमचंद गाँधी   ​________________ * - फलतः नि ई; 5 । । * २. हु । के पास उ प्रबंॐ लिए अभी न दी । * छ । म क , ३ ६ ३ ३ ३ । । ज्ञान ही है। दिल- ि * - * : जिसे...
    ३३९ B (७१६ शब्द) - ०४:०६, ४ अगस्त २०२३
  • गाँधी   ​________________ -कई : भार ४ माना थिन बर्ण है । उता दूरे अन्य का यह ४ प्रभंगपर दाजुत्ता विचार करने योग्य -- অজস্ব বন্দি দিয়ে খ্রি:।। হংকা ? ঘ...
    ३३० B (८९२ शब्द) - ०४:१२, ४ अगस्त २०२३
  • खुद-ब-खुद सारासारी परीक्षा करने रा। हम यह क्यों न माने कि उनमें न लुच कोई कुयः त उलटा उसीका असर उनके साथियोंपर होगा ? -कुछ भी हो; पर मैं तो उन्हें था। नहीं...
    ३८७ B (८१० शब्द) - ०४:०६, ४ अगस्त २०२३
  • दृष्टि से उसकी ओर देखे। १०—यदि आध्यात्मिक ऋद्धि रखने वाले महर्षिगण रुष्ट हो जाये तो व मनुष्य भी नहीं बच सकने कि जो सुष्टद से सुबढ़ पाश्य के ऊपर निर्भर ।...
    ४४७ B (४६२ शब्द) - ११:११, १० सितम्बर २०२१
  • दी जा सकी। मुख्य भाग ( से तक) में उल्लिखित कवियों और लेखकों की सूची तो प्रारम्भ में दे दी गई है। अनुवाद के मुख्य भाग ( से तक) में आए केवल ग्रन्थों...
    ४७६ B (३,१०५ शब्द) - ००:०९, २ जून २०२१
  • है। 'हि' और '' दोनों ही एक ही हैं। '' का व्यवहार पृथ्वीराजरासो में बराबर मिलता है। 'तुम्हारा' में यह '' अबतक लिपटा चला रहा है। '' के साथ संयुक्त...
    ४६५ B (५,५२२ शब्द) - ००:५९, १४ मई २०२४
  • पिछले २५ बरससे मिताहारी रहता आया हू, फिर भी आज अैसी बीमारीका भोग बना हुआ । अिसे क्या पहले जन्म या अिस जन्मकी कमनसीबी कहा जाय? आप यह भी कहते है कि मनुष्य...
    ३१५ B (५६७ शब्द) - २१:५६, ३१ जुलाई २०२३
  • १२०८) ए ए क ख ग घ च ज ट 3 स ढ प त थ एक ख ग घ च छ ट ठ ड ढ त व थ म प भ म य र न व म म त् थ द ध न प म य र ल व श ष स तू तु क क्ष ज सा ब द्ध ध्वां ण्णा...
    १३० B (१,३६,९२१ शब्द) - १९:४७, १२ फ़रवरी २०२१
  • उसकी कड़ी आवाज़ बिल्कुल जाती रही है, वहाँ भी अन्तरंग भाषा का 'स' बिगड़ कर '' हो गया है। ​ संज्ञाओं में भी अन्तर है, अन्तरंग भाषाओं की मूल विभक्तियां प्रायः...
    ९२५ B (२,३१० शब्द) - ११:४७, १७ जून २०२१
  • अपभ्रंश और अरि अर्थात् शत्रु, जैसे सुरारि मुरारि इत्यादि । भाषा में अन्तवाली स्व इ की मात्रा बहुधा लोप हो जाती है। अदालत-अदा अर्थात् छबि, उसकी लत । पोशाकें...
    ८२१ B (८७८ शब्द) - ०८:२९, ८ दिसम्बर २०१९
  • न करते थे । “पेशेके काममें अगर फीस न लें तो हमारा घर-खर्च नहीं चल सकता और लोगोंकी मदद भी नहीं कर सकते।" यह उनकी दलील थी। उनकी तथा बंगाल-बिहारके बैरिस्टरोंकी...
    ३६६ B (१,०७६ शब्द) - ०४:११, ४ अगस्त २०२३
  • जायगा और उधर जो बहुतेरे जख्मी एकाएक गये हैं, उनकी भी शुश्रूषा हो जायगी । मेरे साथियों और मुझको यह तजवीज पसंद ई और जो विद्यार्थी रह गये थे वे भी नेटली...
    ३५७ B (१,०९३ शब्द) - ०४:०८, ४ अगस्त २०२३
  • मिली है।" () अपने से बड़े लोगों के साथ बोलने में अथवा देवता से प्रार्थना करने में; जैसे, "सारथी—अब मैंने भी तपोवन के चिन्ह देखे"। (शकु°)। "°-पित, मैं...
    ३४५ B (७,६६४ शब्द) - ०८:१२, ७ मई २०२१
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