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नवम्बर की निर्वाचित पुस्तक
भाव-विलास देव द्वारा रचित लक्षण ग्रंथ है। इसका प्रकाशन प्रयाग के तरुण-भारत-ग्रन्थावली द्वारा १९३४ ई. में किया गया था।
"राधाकृष्ण किसोर जुग, पग बंदों जगबंद।
मूरति रति शृङ्गार की, शुद्ध सच्चिदानंद॥
भावार्थ— मैं, प्रेम और शृङ्गार की मूर्त्ति, शुद्ध सच्चिदानन्दस्वरूप, श्री राधाकृष्ण के संसार-पूज्य चरणों की वन्दना करता हूँ।
अरथ धर्म तें होइ अरु, काम अरथ तें जानु।
तातें सुख, सुख को सदा, रस शृङ्गार निदानु॥
ताके कारण भाव हैं, तिनको करत विचार।
जिनहिं जानि जान्यो परै, सुखदायक शृंगार॥
भावार्थ- धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और काम से सुख प्राप्त होता है। सुख का कारण शृङ्गार रस है। शृङ्गार रस के कारण भाव हैं। यहाँ पर उन्ही का वर्णन किया जाता है; क्योंकि उन्हें जान लेने पर शृङ्गार सुखदायक प्रतीत होता है।..."पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
ऊषा-अनिरुद्ध राधेश्याम कथावाचक रचित पौराणिक नाटक है जिसका प्रकाशन १९२५ ई॰ में बरेली के श्रीराधेश्याम प्रेस द्वारा किया गया था।
[गिरि शिखर पर शिव-पार्वती का दिखाई देना, दूसरी ओर वाणासुर का शिवजी की पिंडी के सम्मुख एकाग्र भाव से खड़े हुए तप करते दिखाई देना]
तपसी ने तप डोर से खींचे उमा-निवास॥ अबतक आतारहा है, स्वामीके ढिंगदास।
किंतु आज स्वामी चले निज सेवक के पास॥शिव–प्यारी पार्वती देखरही हो? इसी वीर तपस्वी के तप के कारण आज वृक्षों से वायु का प्रवाह मंद है, नदी का जल बंद है।..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
कामायनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य है। १९३६ ई. में पहली बार प्रकाशित इस कृति को १९९२ ई. में मयूर पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था।
"आर्य साहित्य में मानवों के आदिपुरुष मनु का इतिहास वेदों से लेकर पुराण और इतिहासों में बिखरा हुआ मिलता है। श्रद्धा और मनु के सहयोग से मानवता के विकास की कथा को, रूपक के आवरण में, चाहे पिछले काल में मान लेने का वैसा ही प्रयत्न हुआ हो जैसाकि सभी वैदिक इतिहास के साथ निरुक्त के द्वारा किया गया, किंतु मन्वंतर के अर्थात् मानवता के नवयुग के प्रवर्त्तक के रूप में मनु की कथा आर्यों की अनुश्रुति में दृढ़ता से मानी गयी है। इसलिए वैवस्वत मनु को ऐतिहासिक पुरुष ही मानना उचित है। प्रायः लोग गाथा और इतिहास में मिथ्या और सत्य का व्यवधान मानते हैं। किंतु सत्य मिथ्या से अधिक विचित्र होता है। आदिम युग के मनुष्यों के प्रत्येक दल ने ज्ञानोन्मेष के अरुणोदय में जो भावपूर्ण इतिवृत्त संगृहीत किये थे, उन्हें आज गाथा या पौराणिक उपाख्यान कहकर अलग कर दिया जाता है, क्योंकि उन चरित्रों के साथ भावनाओं का भी बीच-बीच में संबंध लगा हुआ-सा दीखता है। घटनाएं कहीं कहीं अतिरंजित-सी भी जान पड़ती हैं। तथ्य-संग्रह-कारिणी तर्कबुद्धि को ऐसी घटनाओं में रूपक का आरोप कर लेने की सुविधा हो जाती है। किंतु उनमें भी कुछ सत्यांश घटना से संबद्ध है, ऐसा तो मानना ही पड़ेगा।..."(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/सितंबर २०२४
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/जुलाई 2024
- शोधित की जा रही पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
बालमुकुंद गुप्त (14 नवंबर 1865 — 18 सितंबर 1907) हिंदी के निबंधकार, कवि, नाटककार और संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- शिवशम्भु के चिट्ठे — पत्र शैली में लिखा गया व्यंग्य संग्रह
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 — 15 नवंबर 1937), हिंदी भाषा के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- स्कंदगुप्त (1928), गुप्तकाल के अंतिम प्रसिद्ध शासक पर आधारित ऐतिहासिक नाटक
- एक घूँट (1929), हिंदी भाषा की प्रथम एकांकी
- आकाशदीप (1929), उन्नीस कहानियों का संग्रह
- ध्रुवस्वामिनी (1935), क्लीव पति से विवाहित हिंदू स्त्री के मुक्ति की गाथा पर आधारित नाटक
- कामायनी (1936), जल-प्लावन की गाथा पर आधारित आधुनिककालीन हिंदी का सबसे लोकप्रिय महाकाव्य
- काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (1939), आठ निबंधों का संग्रह
- आँधी (1955), ग्यारह कहानियों का संग्रह
आज का पाठ
"किस प्रकार हिंदी के नाम से नागरी अक्षरों में उर्दू ही लिखी जाने लगी थी, इसकी चर्चा बनारस अखबार के संबंध में कर आए हैं। संवत् १९१३ में अर्थात् बलवे के एक वर्ष पहले राजा शिवप्रसाद शिक्षा-विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए। उस समय और दूसरे विभागों के समान शिक्षा-विभाग में भी मुसलमानों का जोर था जिनके मन में 'भाखापन' का डर बराबर समाया रहता था। वे इस बात से डरा करते थे कि कहीं नौकरी के लिये 'भाखा', संस्कृत से लगाव रखनेवाली हिंदी, न सीखनी पड़े। अतः उन्होंने पहले तो उर्दू के अतिरिक्त हिंदी की भी पढ़ाई की व्यवस्था का घोर विरोध किया। उनका कहना था कि जब अदालती कामों में उर्दू ही काम में लाई जाती है तब एक और जवान का बोझ डालने से क्या लाभ? 'भाखा' में हिंदुओं की कथा-वार्त्ता आदि कहते सुन वे हिंदी को हिंदुओं की मजहबी जबान कहने लगे थे।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०२
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६४,९७२
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,६०३, शोधित पृष्ठ = ७२,११२
- समस्याकारक = १०, अशोधित = ९०,०९५, रिक्त = २,७५५
- सामग्री पृष्ठ = ५,८४४, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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