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दिसम्बर की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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पुरातत्त्व प्रसंग महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ऐतिहासिक कृति है जिसका प्रकाशन सन् १९२९ ई॰ में झाँसी के साहित्य भवन, चिरगाँव द्वारा किया गया था।


"भारत जिस गति या दुर्गति को इस समय, नहीं, बहुत पहले ही से, प्राप्त हो रहा है, उसका कारण दैव दुर्विपाक नहीं। कारण तो स्वयमेव भारत ही की अकर्म्मण्यता है। जिस भारत ने समुद्र पार दूरवर्ती देशों और टापुओं तक में अपने उपनिवेश स्थापित किये, जिसने दुर्ल्लन्घ्य पर्वतों और पार्वत्य उपत्यकाओं का लंघन करके अन्य देशों पर अपनी विजय-वैजयन्ती फहराई और जिसने कितने ही असभ्य और अर्द्ध-सभ्य देशों को शिक्षा और सभ्यता सिखाई, वही भारत आज औरों का मुखापेक्षी हो रहा है। जिस भारत के जहाज महासागरों को पार करके अपने वाणिज्य की वस्तुओं से दूसरे देशों को पाटते रहते थे वही भारत आज सुई और दियासलाई तक के लिए विदेशों का मुहताज हो रहा है।..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
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शैवसर्वस्व प्रताप नारायण मिश्र द्वारा लिखित पुस्तक है। इसका प्रकाशन पटना--“खड्गंविलास” प्रेस बांकीपुर ।' द्वारा १८९० ई. में किया गया था।


"आजकल श्रावण का महीना है, वर्षारितु के कारण भू मण्डल एवं गगन मण्डल एक अपूर्व शोभा धारण कर रहे हैं ; जिसे देख के पशु पक्षी नर नारी सभी आनन्दित होतेहैं । काम धन्धा बहुत अल्प होने के कारण सब ढंग के लोग अपनी २ रुचि के अनुसार मन बहलाने में लगे हैं, कोई बागौ में झूला डाले मित्रों सहित चन्द्रमुखियों के मद माती आखों से हरियाली देखने में मग्न है ! कोई लंगोट कसे भंग खाने व्यायाम में संलग्न है ! कोई भोर मांझ नगर के बाहर की वायु सेवन ही को सुख जानता है ! कोई स्वयं तथा ब्राह्मण द्वारा भगवान भूतनाथ की दर्शन पूजनादि में लौकिक और पारलौकिक कल्याण मानता है ! संसार में भांति २ के लोग हैं उनकी रुची भी न्यारी है भक्त भी एक प्रकार के नहीं होते कोई बकुला भक्त हैं अर्थात् दिखाने मात्र के भक्त पर मन जैसे का तैसा ! कोई पेटहुन्त भक्त हैं अर्थात् यजमान से दक्षिणा मिलनी चाहिए और काम न किया पूजाही सही !..."(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

अनुपम मिश्र (1948 — 19 दिसम्बर 2016), लेखक, पत्रकार और पर्यावरणविद् थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ :

  1. राजस्थान की रजत बूँदें (1995)
  2. आज भी खरे हैं तालाब (2004)
  3. साफ़ माथे का समाज (2006)

आज का पाठ

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आधुनिक काल (प्रकरण २) जयशंकर प्रसाद रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।

"श्री जयशंकर प्रसाद पहले ब्रजभाषा में कविताएँ लिखा करते थे जिनका संग्रह 'चित्राधार' में हुआ है। संवत् १९७० से वे खड़ी बोली की ओर आए और 'कानन-कुसुम', 'महाराणा का महत्त्व', 'करुणालय' और 'प्रेम-पथिक' प्रकाशित हुए। 'कानन-कुसुम' में तो प्रायः उसी ढंग की कविताएँ हैं जिस ढंग की द्विवेदी-काल में निकला करती थीं। 'महाराणा का महत्त्व' और 'प्रेमपथिक' (सं॰ १९७०) अतुकांत रचना है जिसका मार्ग पं॰ श्रीधर पाठक पहले दिखा चुके थे। भारतेंदु काल में ही पं॰ अंबिकादत्त व्यास ने बँगला की देखा-देखी कुछ अतुकांत पद्य आजमाए थे। पीछे पंडित श्रीधर पाठक ने 'सांध्य अटन' नाम की कविता खड़ी बोली के अतुकांत (तथा चरण के बीच में पूर्ण विरामवाले) पद्यों में बड़ी सफलता के साथ प्रस्तुत की थी।..."(पूरा पढ़ें)

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