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अक्टूबर की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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सेवासदन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा १९१९ ई॰ में किया गया था। यह प्रेमचंद का हिंदी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था जिसकी लोकप्रियता ने उन्हें हिंदी का उपन्यासकार बना दिया।

"पश्चाताप के कड़वे फल कभी-न-कभी सभी को चखने पड़ते है, लेकिन और लोग बुराइयों पर पछताते हैं, दारोगा कृष्णचन्द्र अपनी भलाइयों पर पछता रहे थे। उन्हें थानेदारी करते हुए पचीस वर्ष हो गए; लेकिन उन्होंने अपनी नीयत को कभी बिगड़ने न दिया था। यौवनकाल में भी, जब चित्त भोग-विलास के लिए व्याकुल रहता है उन्होंने निस्पृहभाव से अपना कर्तव्य-पालन किया था। लेकिन इतने दिनों के बाद आज वह अपनी सरलता और विवेक पर हाथ मल रहे थे। उनकी पत्नी गंगाजली सती-साध्वी स्त्री थी। उसने सदैव अपने पति को कुमार्ग से बचाया था। पर इस समय वह भी चिन्ता में डूबी हुई थी। उसे स्वयं सन्देह हो रहा था कि वह जीवन भर की सच्चरित्रता बिलकुल व्यर्थ तो नही हो गई?..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
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कोड स्वराज, आधुनिक समय के नागरिक प्रतिरोध के अभियान की एक कहानी है, जो महात्मा गाँधी और उनके सत्याग्रह के अभियानों से प्रेरणा लेती है, जिसने सरकारों का अपने नागरिकों के साथ बातचीत करने का तरीका बदल दिया। ज्ञान की सार्वभौमिक पहुंच, सूचना का लोकतांत्रिककरण और स्वतंत्र ज्ञान की खोज में, मालामुद और पित्रोदा गांधीवादी मूल्यों को, आधुनिक समय पर लागू करने का दावा करते हैं और भारत और दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए एक एजेंडा पेश करते हैं। ( कोड स्वराज पूरा पढ़ें)



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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

मोहनदास करमचन्द गाँधी (2 अक्टूबर 1869 — 30 जनवरी 1948) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, दार्शनिक, लेखक एवं पत्रकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. हिन्द स्वराज (1907), गाँधी-दर्शन की पहली सैद्धांतिक पुस्तक
  2. सत्य के प्रयोग (1948), आत्मकथा
  3. रामनाम (1949), गाँधी के विचारों का संग्रह

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर 1884 - 2 फरवरी 1941) हिंदी भाषा के आलोचक, निबंधकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. रस-मीमांसा (1949)
  2. चिन्तामणि
  3. कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ
  4. काव्य में रहस्यवाद
  5. हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929)

भारतीय डाक टिकट पर प्रेमचंद प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 — 8 अक्टूबर 1936) हिंदी और उर्दू के अत्यंत लोकप्रिय कथाकार एवं विचारक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. सेवासदन (1918), हिंदी में प्रकाशित पहला उपन्यास।
  2. प्रेमाश्रम (1922), किसान आंदोलन की महागाथा
  3. रंगभूमि (1931), मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित
  4. गबन (1931), साधारण स्त्री जालपा के अद्वितीय बनने की गाथा
  5. कर्मभूमि (1932), किसानों की लगान समस्या पर केंद्रित उपन्यास
  6. गोदान (1936), औपनिवेशिक चक्की में पिसते किसान जीवन की महागाथा
  7. पाँच फूल (1929), पाँच कहानियों का संग्रह
  8. नव-निधि (1948), नौ कहानियों का संग्रह
  9. प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ (1950), कहानी संग्रह
  10. मानसरोवर १ तथा मानसरोवर २- कहानी संग्रह
  11. कुछ विचार — निबंध और व्याख्यान संग्रह।

आज का पाठ

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कृष्णभक्ति शाखा रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।

"––पहले कहा जा चुका है कि विक्रम की १५वीं और १६वीं शताब्दी में वैष्णव धर्म का जो आंदोलन देश के एक छोर से दूसरे छोर तक रहा उसके श्री बल्लभाचार्यजी प्रधान प्रवर्त्तकों में से थे। आचार्यजी का जन्म संवत् १५३५ वैशाख कृष्ण ११ को और गोलोकवास संवत् १५८७ आषाढ़ शुक्ल ३ को हुआ। ये वेदशास्त्र में पारंगत धुरंधर विद्वान् थे। रामानुज से लेकर वल्लभाचार्य तक जितने भक्त दार्शनिक या आचार्य हुए है सबका लक्ष्य शंकराचार्य के मायावाद और विवर्त्तवाद से पीछा छुड़ाना था जिनके अनुसार भक्ति अविद्या या भ्रांति ही ठहरती थी। शंकर ने केवल निरुपाधि निर्गुण ब्रह्म की ही पारमार्थिक सत्ता स्वीकार की थी। वल्लभ ने ब्रह्म में सब धर्म माने। सारी सृष्टि को उन्होने लीला के लिये ब्रह्म की आत्मकृति कहा। अपने को अंश रूप जीवों में बिखराना ब्रह्म की लीला मात्र है। अक्षर ब्रह्म अपनी आविर्भाव तिरोभाव की अचिंत्य शक्ति से जगत् के रूप में परिणत भी होता है और उसके परे भी रहता है। वह अपने सत्, चित् और आनंद, इन तीनों स्वरूपों का आविर्भाव और तिरोभाव करता रहता है। जीव में सत् और चित् का आविर्भाव रहता है, पर आनंद का तिरोभाव। जड़ में केवल सत् का आविर्भाव रहता है, चित् और आनंद दोनों का तिरोभाव। माया कोई वस्तु नहीं।..."(पूरा पढ़ें)

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