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नवम्बर की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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ऊषा-अनिरुद्ध राधेश्याम कथावाचक रचित पौराणिक नाटक है जिसका प्रकाशन १९२५ ई॰ में बरेली के श्रीराधेश्याम प्रेस द्वारा किया गया था।


[गिरि शिखर पर शिव-पार्वती का दिखाई देना, दूसरी ओर वाणासुर का शिवजी की पिंडी के सम्मुख एकाग्र भाव से खड़े हुए तप करते दिखाई देना]

पार्वती–[स्वगत]देख तपस्या भक्तकी, डोल उठा कैलास।

तपसी ने तप डोर से खींचे उमा-निवास॥ अबतक आतारहा है, स्वामीके ढिंगदास।

किंतु आज स्वामी चले निज सेवक के पास॥
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शिव–प्यारी पार्वती देखरही हो? इसी वीर तपस्वी के तप के कारण आज वृक्षों से वायु का प्रवाह मंद है, नदी का जल बंद है।..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
पूर्ण पुस्तकें

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साहित्य सीकर महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंधों का संग्रह है जिसका प्रकाशन १९२९ ई॰ में प्रयाग के तरुण-भारत-ग्रन्थावली द्वारा किया गया था।


"वेद शब्द 'विद्' धातु से निकला है। इस धातु से जानने का अर्थ निकलता है। अतएव वेद वह धर्म-ग्रन्थ है जिसकी कृपा से ज्ञान की प्राप्ति होती है—जिससे सब तरह की ज्ञान की बातें जानी जाती हैं।
वेद पर सनातनधर्मावलम्बी हिन्दुओं का अटल विश्वास है। वेद हम लोगों का सब से श्रेष्ठ और सबसे पुराना ग्रन्थ है। वह इतना पुराना है कि किरिस्तानों का बाइबिल, मुसलमानों का क़ुरान, पारसियों का जेन्द-आवेस्ता और बौद्धों के त्रिपिटक आदि सारे धर्म-ग्रन्थ प्राचीनता में कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकते। ..."(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

बालमुकुंद गुप्त (14 नवंबर 1865 — 18 सितंबर 1907) हिंदी के निबंधकार, कवि, नाटककार और संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. शिवशम्भु के चिट्ठे — पत्र शैली में लिखा गया व्यंग्य संग्रह

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 — 15 नवंबर 1937), हिंदी भाषा के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. स्कंदगुप्त (1928), गुप्तकाल के अंतिम प्रसिद्ध शासक पर आधारित ऐतिहासिक नाटक
  2. एक घूँट (1929), हिंदी भाषा की प्रथम एकांकी
  3. आकाशदीप (1929), उन्नीस कहानियों का संग्रह
  4. ध्रुवस्वामिनी (1935), क्लीव पति से विवाहित हिंदू स्त्री के मुक्ति की गाथा पर आधारित नाटक
  5. कामायनी (1936), जल-प्लावन की गाथा पर आधारित आधुनिककालीन हिंदी का सबसे लोकप्रिय महाकाव्य
  6. काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (1939), आठ निबंधों का संग्रह
  7. आँधी (1955), ग्यारह कहानियों का संग्रह

आज का पाठ

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गद्य-साहित्य का आविर्भाव रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।

"किस प्रकार हिंदी के नाम से नागरी अक्षरों में उर्दू ही लिखी जाने लगी थी, इसकी चर्चा बनारस अखबार के संबंध में कर आए हैं। संवत् १९१३ में अर्थात् बलवे के एक वर्ष पहले राजा शिवप्रसाद शिक्षा-विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हुए। उस समय और दूसरे विभागों के समान शिक्षा-विभाग में भी मुसलमानों का जोर था जिनके मन में 'भाखापन' का डर बराबर समाया रहता था। वे इस बात से डरा करते थे कि कहीं नौकरी के लिये 'भाखा', संस्कृत से लगाव रखनेवाली हिंदी, न सीखनी पड़े। अतः उन्होंने पहले तो उर्दू के अतिरिक्त हिंदी की भी पढ़ाई की व्यवस्था का घोर विरोध किया। उनका कहना था कि जब अदालती कामों में उर्दू ही काम में लाई जाती है तब एक और जवान का बोझ डालने से क्या लाभ? 'भाखा' में हिंदुओं की कथा-वार्त्ता आदि कहते सुन वे हिंदी को हिंदुओं की मजहबी जबान कहने लगे थे।..."(पूरा पढ़ें)

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