भारत का संविधान/परिशिष्ट

विकिस्रोत से
भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

[ १९० ] 

परिशिष्ट
संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१
भारत के संविधान को संशोधित करने के लिये अधिनियम

(१८ जून, १९५१)

संसद् द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम१. यह अधिनियम संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

 

अनुच्छेद १५ का
संशोधन
२ संविधान के अनुच्छेद १५ में निम्नलिखित खंड जोड़ दिया जायेगा—

"(४) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद २९ के खंड (२) की किसी बात से राज्य को सामाजिक और शिक्षात्मक दृष्टि से पिछड़े हुए किन्दी नागरिक वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित आदिमजातियों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने में बाधा न होगी।"

३. (१) संविधान के अनुच्छेद १९ में—

अनुच्छेद १६ का
संशोधन और
कुछ विधियों का
मान्यकरण
(क) खंड (२) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रख दिया जायेगा और यह समझा जायेगा कि उक्त खंड सदा ही निम्नलिखित रूप में अधिनियमित रहा है, अर्थात्—

"(२) खंड (१) के उपखंड (क) की कोई बात उवत उपखंड द्वारा दिये गये अधिकारों के प्रयोग पर राज्य की सुरक्षा, विदेशी गज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण, सम्बन्धों, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों तथा न्यायालय अवमान, मानहानि या अपराध उद्दीपन के सम्बन्ध में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई वर्तमान विधि लगाती हो वहां तक उमके प्रवर्तन पर प्रभाव, अथवा वैसे निर्बन्धन लगाने वाली कोई विधि बनाने में गज्य के लिये कोई रुकावट, न डालेगी।" (ख) खंड (६) में "उक्त उपखंड की कोई बात" शब्दों से आरम्भ होने वाले और "राज्य के लिये रुकावट न डालेगी" शब्दों से ममाप्त होने वाले शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित रख दिये जायेंगे, अर्थात्—

"उक्त उपखंड की कोई बात-

(i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिये आवश्यक वृत्तिक या शिल्पिक अर्हताओं से, या
(ii) राज्य के द्वारा अथवा राज्य के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन वाले निगम द्वाग कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा नागरिकों का पूर्णत: या आंशिक अपवर्जन करके या अन्यथा चलाने से, जहां तक कोई वर्तमान विधि सम्बन्ध रखती है वहां तक उसके प्रर्वतन पर प्रभाव, अथवा सम्बन्ध रखने वाली किसी विधि को बनाने में गज्य के लिये रुकावट, न डालेगी।"

(२) संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त जो विधि संविधान की इस धाग की उपधारा (१) द्वारा यथा संशोधित अनुच्छेद १९ के उपबन्धों से संगत है उसकी बाबत केवल इस कारण कि वह उक्त अनुच्छेद के खंड (१) के उपखंड (क) द्वारा प्रदत्त अधिकार को छीन लेने या न्यूनन करने वाली विधि है और उसके प्रवर्तन की व्यावृत्ति यथामूलरूपेण अधिनियमित उस अनुच्छेद के खंड (२) द्वारा नहीं की गयी थी, यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है या कभी शून्य थी। [ १९१ ]

व्याख्या—इस उपधारा में "प्रवृत्त विधि" अभिव्यक्ति से वही अभिप्रेत है जो कि संविधान के अनुच्छेद १३ के खंड (१) में अभिप्रेत है।

नये अनुच्छेद ३१क
का अन्तःस्थापन
४. संविधान के अनुच्छेद ३१ के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद अन्तःस्थापित किया जायेगा और उसकी बाबत समझा जायेगा कि वह सदा ही ऐसे अन्तःस्थापित रहा है, अर्थात्–

सम्पदाओ आदि
के अर्जन के लिए
उपबंध करने
वाली विधियों की
व्यावृत्ति
"३१क. (१) इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हए भी, किसी सम्पदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिये या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या रूपभेद के लिये उपबन्ध करने वाली कोई विधि केवल इस कारण कि वह इस भाग के किन्हीं उपबन्धों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसको छीनती या न्यून करती है, शून्य नहीं समझी जायेगी।

परन्तु जहां कि ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा निर्मित विधि है वहां जब तक कि ऐसी विधि को, राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त न हो गई हो इस अनुच्छेद के उपबन्ध उस विधि के सम्बन्ध में लागू नहीं होंगे।

(२) इस अनुच्छेद में—

(क) “सम्पदा" पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध में वही अर्थ है जो कि उस या उसकी स्थानीय समतुल्य अभिव्यक्ति का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भूधृतियों से सम्बद्ध विद्यमान विधि में है और उसके अन्तर्गत कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा अन्य समान प्रकार का अनुदान भी होगा,
(ख) “अधिकार" पद के अन्तर्गत किसी सम्पदा के सम्बन्ध में, किसी स्वत्वधारी, उपस्वत्वधारी, अपर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारी या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू राजस्व के बारे में कोई अधिकार या विशेषाधिकार भी होंगे।"

नये अनुच्छेद ३१ख
का अन्तःस्थापना
५. धारा ४ द्वारा यथा अन्तःस्थापित संविधान के अनुच्छेद ३१क के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद अन्तःस्थापित किया जायेगा, अर्थात—

कुछ अधिनियमों
और विनियमों
का मान्यकरण
"३१ख अनुच्छेद ३१क में अन्तविर्ष्ट उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना न तो नवम् अनसूची मे उल्लिखित अधिनियमो और विनियमों में से और न उनके उपबन्धों में से किसी की बाबत इस कारण कि ऐसा अधिनियम, विनियम या उपबन्ध इस भाग के किन्हीं उपबन्धों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसको छीन लेता है या न्युन करता है यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है या कभी शून्य हो गया था और किमी न्यायालय या न्यायाधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, आज्ञप्ति या आदेश के होते हुए भी उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरस्त या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, निरन्तर प्रवृत्त रहेगा।"

अनुच्छेद ८५ का
संशोधन
६. संविधान के अनुच्छेद ८५ के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रख दिया जायेगा, अर्थात्—

 

संसद् के सत्र,
सत्रावसान और
विघटन
"८५. (१) राष्ट्रपति समय समय पर संसद् के प्रत्येक सदन को, ऐसे समय तथा स्थान पर, जैसा कि वह उचित समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिये नियुक्त तारीख के बीच छः मास का अन्तर न होगा। [ १९२ ]

(२) राष्ट्रपति समय समय पर—

(क) सदनों या किसी सदन का सत्तावसान कर सकेगा,
(ख) लोक-सभा का विघटन कर सकेगा।"

अनुच्छेद ८७ का
संशोधन
७. संविधान के अनुच्छेद ८७ में—

(१) खंड (१) में "प्रत्येक सत्त के प्रारम्भ में" शब्दों के स्थान पर “लोक-सभा के लिये प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्त के प्रारम्भ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्त के प्रारम्भ में" शब्द रख दिये जायेंगे।

(२) खंड (२) में “तथा सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को पूर्ववर्तिता देने के लिये" शब्द लुप्त कर दिये जायेंगे।

अनुच्छेद १७४ का
संशोधन
८. संविधान के अनुच्छेद १७४ के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रख दिया जायगा, अर्थात्—

राज्य के विधान-
मंडल के सत्र,
सत्तावसान और
विघटन
“१७४. (१) राज्यपाल समय समय पर राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय तथा स्थान पर, जैसा कि वह उचित समझे, अधिवेशन मंडल के सत्र, के लिये आहूत करेगा किन्तु उसके एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियुक्त तारीख के बीच छः मास का अन्तर न होगा।

(२) राज्यपाल समय समय पर— (क) सदन या किसी सदन का सत्तावसान कर सकेगा, (ख) विधान-सभा का विघटन कर सकेगा।"

अनुच्छेद १७६
का संशोधन
९. संविधान के अनुच्छेद १७६ में—

(१) खंड (१) में "प्रत्येक सत्र के प्रारम्भ में" शब्दों के स्थान पर "विधान-सभा के लिये प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारम्भ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्त के प्रारम्भ में" शब्द रख दिये जायेंगे;

(२) खंड (२.) में “तथा सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को पूर्ववर्तिता देने के लिये" शब्द लुप्त कर दिये जायेंगे।

अनुच्छेद ३४१
का संशोधन
१०. संविधान के अनुच्छेद ३४१ के खंड (१) में "राज्य के राज्यपाल या अनुच्छेद ३४१ राजप्रमुख से परामर्श करने के पश्चात" शब्दों के स्थान पर "किसी राज्य के सम्बन्ध का संशोधन में, और जहां वह प्रथम अनसूची के भाग क या भाग ख में उल्लिखित कोई राज्य है उसके राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श करने के पश्चात्" शब्द रख दिये जायेंगे।

अनुच्छेद ३४२ का
संशोधन
११. संविधान के अनुच्छेद ३४२ के खंड (१) में "राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श करने के पश्चात" शब्दों के स्थान पर "किसी राज्य के सम्बन्ध में, और जहां वह प्रथम अनसूची के भाग 'क' या भाग 'ख' में उल्लिखित कोई राज्य है उसके राज्यपाल या राजप्रमुख से परामर्श करने के पश्चात्" शब्द रख दिये जायेंगे।

अनुच्छेद ३७२ का
संशोधन
१२. संविधान के अनुच्छेद ३७२ के खंड (३) के उपखंड (क) में “दो वर्ष" शब्दों के स्थान पर, “तीन वर्ष" शब्द रख दिये जायेंगे।

अनुच्छेद ३७६ का
संशोधन
१३. संविधान के अनुच्छेद ३७६ के खंड (१) के अन्त में निम्नलिखित जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्—

"कोई ऐसा न्यायाधीश, इस बात के होते हए भी कि वह भारत का नागरिक नहीं है, ऐसे उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के रूप में या किसी अन्य उच्च-न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये पात्र होगा।" [ १९३ ]

नवम् अनुसूची
का जोड़ना
१४. संविधान की अष्टम् अनुसूची के पश्चात् निम्नलिखित अनुसूची जोड़ दी जायेगी, अर्थात्—

 

नवम् अनुसूची

(अनुच्छेद ३१ख)

१. बिहार भूमि सुधार अधिनियम, १९५० (१९५० का बिहार अधिनियम ३०)।
२. मुम्बई आभोग और कृषिक भूमि अधिनियम, १९४८ (१९४८ का मुम्बई अधिनियम ६७)।
३. मुम्बई मालिकी धृति उत्सादन अधिनियम, १९४६ (१९४६ का मुम्बई अधिनियम ६१)।
४. मुम्बई तालुकदारी धृति उत्मादन अधिनियम, १९४९ (१९४९ का मुम्बई अधिनियम ६२)।
५. पंच महाल मेहवासी धृति उत्सादन अधिनियम, १९४९ (१९४९ का मुम्बई अधिनियम ६३)।
६. मुम्बई खोती उत्पादन अधिनियम, १९५० (१९५० का मुम्बई अधिनियम ६)।
७. मुम्बई परगना और कुलकर्णी वतन उत्सादन अधिनियम, १९५० (१९५० का मुम्बई अधिनियम ६०)।
८. मध्य प्रदेश स्वामित्वाधिकारों (मालिकाना हकों) (इलाकों, महालों, दमाला भूमियों) के अंत करने का अधिनियम, १९५० (१९५१ का मध्य प्रदेश अधिनियम १)।
९. मद्रास सम्पदा (उत्सादन और रय्यतवाड़ी में संपरिवर्तन) अधि-नियम, १९४८ (१९४८ का मद्रास अधिनियम २६)।
१०. मद्रास सम्पदा (उत्सादन और रय्यतवाडी में संपरिवर्तन) संशोधन अधिनियम, १९५० (१९५० का मद्रास अधिनियम १)।
११. उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, १९५० (१९५१ का उत्तर प्रदेश अधिनियम १)।
१२. हैदराबाद (जागीरों का उत्सादन) विनियम, १३५८ च (फसली १३५८ का नं० ६९)।
१३. हैदराबाद जागीर (लघुकरण) विनियम, १३५९ च (फसली १३५६ का नं० २५)।
[ १९४ ]

परिशिष्ट

संविधान (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, १९५२

भारत क संविधान के अपर संशोधन क लिये अधिनियम

(१ मई, १९५३)

संसद् द्वारा निम्नरूपण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम

१. यह अधिनियम संविधान (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, १९५२ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

अनुच्छेद ८१ का
संशोधन

२. संविधान के अनुच्छेद ८१ के खंड (१) के उपखंड (ख) में "प्रति ७५०,००० जनसंख्या के लिये एक से कम सदस्य तथा" शब्द और अंक लप्त कर दिये जायेंगे। [ १९५ ] 

परिशिष्ट

संविधान (तृतीय संशोधन) अधिनियम, १९५४

भारत के संविधान के अपर संशोधन के लिये अधिनियम

(२२ फरवरी, १९५५)

भारत गणराज्य के पांचवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम१. यह अधिनियम संविधान (तृतीय संशोधन) अधिनियम, १९५४ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

सप्तम अनुसूची का
संशोधन
२. संविधान की सप्तम अनसूची में सूची ३ में की प्रविष्टि ३३ के स्थान पर निम्नलिम्बिन प्रविष्टि रख दी जायेगी, अर्थात्—

"३३ (क) जहां संसद् द्वारा विधि द्वारा किसी उद्योग का संघ द्वारा नियंत्रण लोक हित में इष्टकर घोषित किया गया है वहां उस उद्योग में के उत्पादों में, और उसी प्रकार के आयात की गई वस्तुओं का ऐसे उत्पादों के रूप में,

(ख) खाद्य पदार्थो का, जिनके अन्तर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैं,
(ग) ढोरों के चारें का, जिनके अन्तर्गत खली और अन्य सारकृत चारें है,
(घ) कच्ची रुई का, चाहे ओटी हुई हो या बिना ओटी हुई हो और बिनौले का, और
(ङ) कच्चे पटसन का

व्यापार और वाणिज्य तथा उत्पादन, सम्भरण और वितरण ।" [ १९६ ] 

परिशिष्ट

संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५

भारत के संविधान के अपर संशोधन के लिये अधिनियम

(२७ अप्रैल, १९५५)

भारत गणराज्य के छठे वर्ष में संसद् द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम १. यह अधिनियम संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १६५५ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

अनुच्छेद ३१ का
संशोधन
२. संविधान के अनुच्छेद ३१ में खंड (२) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रख दिया जायेगा, अर्थात्—

(२) कोई सम्पत्ति, सार्वजनिक प्रयोजन के सिवाय, और ऐसी किसी विधि के, जो इस प्रकार अर्जित या अधिग्रहीत सम्पत्ति के लिये प्रतिकर के लिये उपबन्ध करती है और या तो प्रतिकर की राशि को नियत करती है या उन सिद्धान्तों और रीति का उल्लेख करती है जिनसे प्रतिकर निर्धारित होना है और दिया जाना है, प्राधिकार के सिवाय अनिवार्यतः अर्जित या अधिग्रहीत न की जायेगी; और किसी ऐसी विधि पर किसी न्यायालय में इस आधार पर आपत्ति नहीं की जायेगी कि उस विधि द्वारा उपबन्धित प्रतिकर पर्याप्त नहीं है।

(२क) जहां किसी सम्पत्ति के स्वामित्व के या कब्जा रखने के अधिकार का हस्तान्तरण राज्य या ऐसे किसी निगम को,जो कि राज्य के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन है, करने के लिये उपबन्ध विधि नहीं करती है वहां इस बात के होते हुए भी कि वह किसी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से वंचित करती है उसकी बाबत यह न समझा जायेगा कि वह सम्पत्ति के अनिवार्य अर्जन या अधिग्रहण के लिये उपबन्ध करती है।"

अनुच्छद ३१क का ३. संविधान के अनुच्छद ३१क में—

(क) खंड (१) के स्थान में निम्नलिखित खंड रख दिया जायेगा और यह समझा जायेगा कि वह सदा ही ऐसे रखा हुआ था, अर्थात्-

"(१) अनुच्छेद १३ म अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी—

(क) किसी सम्पदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिये या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या रूपभेदन के लिए, या
(ख) किसी सम्पत्ति का प्रबन्ध या तो लोक हित में या उस सम्पत्ति का उचित प्रबन्ध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्य द्वारा मर्यादित कालावधि के लिए ले लिये जाने के लिए, या
(ग) दो या अधिक निगमों को या तो लोक हित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबन्ध सुनिश्चित करने की दृष्टि से समामेलित करने के लिए, या
(घ) निगमों के प्रबन्ध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबन्ध निदेशकों, निदेशकों या प्रबन्धकों के किन्हीं अधिकारों के या अंशधारियों के किन्हीं मतदान अधिकारों के निर्वापन या रूपभेदन के लिये, या

[ १९७ ]

(ङ) किसी खनिज या खनिज तेल को खोजने या लब्ध करन के प्रयोजन के लिये किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के बल पर प्रोद्भूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या रूपभेदन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पुर्व पर्यवस्त करने या प्रतिसंहृत करने के लिए.

उपबन्ध करने वाली विधि की बाबत इस कारण कि वह अनुच्छेद १४. अनच्छेद १९ या अनच्छेद ३१ द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किमी से असंगत है या उसको छीनती या न्यून करती है यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है;

परन्तु जहां कि ऐसी विधि किसी राज्य के विधान मंडल द्वारा निर्मित विधि है वहां जब तक कि ऐसी विधि को राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त न हो गई हो, इस अनुच्छेद के उपबन्ध उस विधि के सम्बन्ध में लागू नहीं होंगे," और

(ख) खंड (२) में,

(i) उपखंड (क) में “अनुदान" शब्द के पश्चात् "और मद्रास और तिरुवांकुर, कोचीन राज्यों में कोई जनमम् अधिकार" शब्द अन्तःस्थापित किये जायेंगे और सदा ही अन्त:स्थापित समझे जायेंगे, और
(ii) उपखंड (ख) में "भू धृतिधारी" शब्द के पश्चात् "रय्यत, अवर रय्यत" शब्द अन्तःस्थापित किये जायेंगे और सदा ही अन्तःस्थापित समझे जायेंगे।

अनुच्छेद ३०५ के
स्थान पर नया
अनुच्छेद रखना
४. संविधान के अनुच्छेद ३०५ के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रख दिया जायेगा, अर्थात–

 

वर्तमान विधियों
और राज्य एका-
धिपत्यों के लिए
उपबन्ध करने
वाली विधियों की
व्यावृत्ति
"३०५. अनुच्छेद ३०१ और ३०३ की कोई बात किसी वर्तमान विधि के उपबन्धों पर, वहां तक के सिवाय जहां तक कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा निदेश दे, कोई प्रभाव न डालेगी; और अनुच्छेद ३०१ की कोई बात संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५ के प्रारम्भ से पूर्व निर्मित किसी विधि के प्रवर्तन पर वहां तक, जहां तक कि वह विधि किसी ऐसे विषय से सम्बद्ध है जैसा कि अनुच्छेद १९ के खंड (६) के उपखंड (ii) में निर्दिष्ट है, कोई प्रभाव न डालेगी या ऐसे किसी विषय से सम्बद्ध, जैसा कि अनुन्छेद १९ के खंड (६) के उपखंड (ii) में निर्दिष्ट है, कोई विधि बनाने से संसद् या किसी राज्य के विधान-मंडल को न रोकेगी।"

नवम् अनुसूची का
संशोधन
५. संविधान की नवम् अनुसूची में प्रविष्टि १३ के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टियां जोड़ी जायेंगी, अर्थात्-

“१४. बिहार विस्थापित व्यक्ति पुनर्वास (भूमि का अर्जन) अधिनियम, १९५० (१९५० का बिहार अधिनियम ३८)।

१५. संयुक्त प्रान्त के (शरणार्थियों को बसाने के लिये) भूमि प्राप्त करने का ऐक्ट, १९४८ (१९४८ का संयुक्त प्रान्त एक्ट २६)।

१६. विस्थापित व्यक्तियों का पुनर्वास (भूमि अर्जन) अधिनियम, १९४८ (१९४८ का अधिनियम ६०)।

१७. बीमा (संशोधन) अधिनियम, १९५० (१९५० का अधिनियम ४७) की धारा ४२ द्वारा यथा अन्तःस्थापित, बीमा अधिनियम, १९३८ (१९३८ का अधिनियम ४) की ५२ क से लेकर ५२छ तक की धाराएं। [ १९८ ]

१८. रेल समवाय (आपात उपबन्ध) अधिनियम, १९५१ (१९५१ का अधिनियम ५१)।

१९. उद्योग (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, १९५३ (१९५३ का अधिनियम २६) की धाग १३ द्वाग यथा अन्तःस्थापित, उद्योग (विकाम और विनियमन) अधिनियम, १९५१ (१९५१ का अधिनियम ६५) का अध्याय ३क।

२०. १९५१ का पश्चिमी बंगाल अधिनियम, २९ द्वारा यथासंशोधित पश्चिमी बंगाल भूमि विकास और आयोजन अधिनियम, १९४८ (१९४८ का पश्चिमी बंगाल अधिनियम २१)"। [ १९९ ] 

परिशिष्ट

विधान (पंचम संशोधन) अधिनियम, १९५५

भारत के संविधान के अपर संशोधन के लिये अधिनियम

(२४ दिसम्बर, १९५५)

भारत गणराज्य के छठे वर्ष में संसद् द्वाग निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम १. यह अधिनियम संविधान (पंचम संगोधन) अधिनियम, १९५५ के नाम में ज्ञात हो सकेगा।

अनुच्छेद ३ का
संशोधन
२. संविधान के अनुच्छेद ३ में परन्तुक के स्थान पर निम्नलिखित परन्तुक रख दिया जाएगा, अर्थात्—

"परन्तु इस प्रयोजन के लिये कोई विधयक राष्ट्रपति की सिपारिश बिना, तथा जहां विधेयक में अन्तविप्ट प्रस्थापना का प्रभाव प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख) में उल्लिखित राज्यों में से किसी के क्षेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता हो वहां जब तक कि उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा उस पर अपने विचार, ऐसी कालावधि के अन्दर, जैसी कि निर्देश में उल्लिखित की जाए या ऐसी अतरिक्त कालावधि के अन्दर, जैसी कि राष्ट्रपति समनुज्ञात करे, प्रकट किये जाने के लिये राष्ट्रपति द्वारा उसे निर्देशित न कर दिया गया हो और उस प्रकार उल्लिखित या समनुज्ञात कालावधि समाप्त न हो गयी हो संसद् के किसी सदन में पुरःस्थापित न किया जायेगा।"
[ २०० ] 

परिशिष्ट

संविधान (षष्ठ संशोधन) अधिनियम, १९५६

भारत के संविधान का अपर संशोधन करने के लिए अधिनियम

(११ सितम्बर, १९५६)

भारत गणराज्य के सातवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम१. यह अधिनियम संविधान (पष्ठ संशोधन) अधिनियम, १९५६ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

सप्तम अनुसूचीका
संशोधन
२. संविधान की सप्तम अनुसूची में—

(क) संघ सूची में प्रविष्टि ९२ के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अन्तःस्थापित की जाएगी, अर्थात्—

"९२क . समाचारपत्रों से भिन्न वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर उस सूरत में कर जिसमे कि ऐसा क्रय या विक्रय अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य की चर्या में हो," और

(ख) राज्य सूची में प्रविष्टि ५४ के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रख दी जाएगी, अर्थात्—

"५४. सूची १ की प्रविष्टि ९२क के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, समाचार-पत्रों से भिन्न वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर कर।"

अनुच्छेद २६९ का
संशोधन
३. संविधान के अनुच्छेद २६९ में,—

(क) खंड (१) में उपखंड (च) के पश्चात् निम्नलिखित उपखंड अन्तःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—
“(छ) समाचारपत्रों से भिन्न वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर उस सूरत में कर जिसमें कि ऐसा क्रय या विक्रय अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्यिक की चर्या में हो।" और
(ख) खंड (२) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अन्तःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—
"(३) यह अवधारित करने के लिये कि अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य की चर्या में वस्तुओं का क्रय या विक्रय कब होता है संसद् विधि द्वारा सिद्धांत सूत्रित कर सकेगी।"

अनुच्छेद २८६ का
संशोधन
४. संविधान के अनुच्छेद २८६ में,—

(क) खंड (१) में व्याख्या लुप्त कर दी जाएगी, और
(ख) खंड (२) और (३) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रख दिये जायेंगे, अर्थात्—
"(२) यह अवधारित करने के लिये कि खंड (१) में वर्णित प्रकारों में से किसी में की वस्तुओं का क्रय या विक्रय कब होता है संसद् विधि द्वारा सिद्धांत सूत्रित कर सकेगी।"
[ २०१ ]
"(३) जहां तक कि किसी राज्य की कोई विधि अन्तराज्यिक व्यापार या वाणिज्य में ऐसी वस्तुओं के, जो कि संसद् द्वारा विधि द्वारा विशेष महत्व की घोषित की गई हैं, क्रय या विक्रय पर किसी कर का आरोपण करती है या आरोपण प्राधिकृत करती है, वहां तक वह विधि उस कर के उद्ग्रहण की पद्धति, दरों और अन्य प्रसंगतियों के सम्बन्ध में ऐसे निर्बन्धनों और शर्तों के अध्यधीन होगी जैसे कि संसद विधि द्वारा उल्लिखित करे।"
[ २०२ ] 

परिशिष्ट

संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६

भारत के संविधान के अपर संशोधन के लिए अधिनियम

(१९ अक्तूबर, १९५६)

भारत गणराज्य के सातवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो:—

संक्षिप्त नाम और
प्रारम्भ

१. (१) यह अधिनियम संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।
 
(२) यह १९५६ की नवम्बर के प्रथम दिन को प्रवृत्त होगा।

अनुच्छेद १ और
प्रथम अनुसूची का
संशोधन

२. (१) संविधान के अनुच्छेद १ में
(क) खंड (२) के स्थान में निम्नलिखित खंड रख दिया जाएगा, अर्थात्—
"(२) वे राज्य और उन के राज्य-क्षेत्र के होंगे जो प्रथम अनुसूची में उल्लिखित हैं," और
(ख) खंड (३) में उपखंड (ख) के स्थान में निम्नलिखित उपखंड रख दिया जाएगा, अर्थात्—
"(ख) प्रथम अनुसूची में उल्लिखित संघ राज्य-क्षेत्र, था" ।

(२) राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ और बिहार और पश्चिमी बंगाल (राज्य-क्षेत्र हस्तान्तरण) अधिनियम, १९५६ द्वारा यथा संशोधित, संविधान की प्रथम अनुसूची के स्थान में निम्नलिखित अनुसूची रख दी जायेगी, अर्थात्—

प्रथम अनुसूची (अनुच्छेद १ और ४) १. राज्य
नाम राज्यक्षेत्र
१. आन्ध्र प्रदेश वे राज्यक्षेत्र जो आन्ध्र राज्य अधिनियम, १६५३ की धारा (३) की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं तथा वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ३ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं।
२. आसाम वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले आसाम प्रान्त, खासी राज्य और आसाम आदिमजाति क्षेत्रों में समाविष्ट थे किन्तु वे राज्यक्षेत्र जो आसाम (सीमा परिवर्तन) अधिनियम १९५१ की अनुसूची में उल्लिखित, इससे अपवर्जित हैं।

[ २०३ ]

परिशिष्ट

नाम राज्यक्षत्र
३. बिहार
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले या तो बिहार प्रान्त में समाविष्ट थे, या इस प्रकार प्रशासित थे मानो कि वे उस प्रान्त के भाग रहे हों, किन्तु वे राज्यक्षेत्र जो बिहार और पश्चिमी बंगाल (राज्य क्षेत्रों का हस्तान्तरण) अधिनियम, १९५६ की धारा ३ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं, इससे अगवर्जित हैं।
४ मुम्बई
वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ८ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं।
५ केरल
वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ५ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं।
६ मध्यप्रदेश
वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ९ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं।
७. मद्रास
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले या तो मद्रास प्रान्त में समाविष्ट थे या इस प्रकार प्रशासित थे मानो कि वे उस प्रान्त के भाग रहे हों और वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ४ में उल्लिखित हैं किन्तु वे राज्यक्षेत्र जो आन्ध्र राज्य अधिनियम, १९५३ की धारा ३ को उपधारा (१) में और धारा ४ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं तथा वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ५ की उपधारा (१) के खंड (ख) में और धारा ६ में और धारा ७ की उपधारा (१) के खंड (घ) में उल्लिखित हैं इससे अपवर्जित हैं।
८. मैसूर
वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ७ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं।
६. उड़ीसा
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले या तो उड़ीसा प्रान्त में समाविष्ट थे या इस प्रकार प्रशासित थे मानो कि वे उस प्रान्त के भाग रहे हों।
१०. पंजाब
वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५३ की धारा ११ में उल्लिखित हैं।
११. राजस्थान
वे राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा १० में उल्लिखित हैं।
[ २०४ ] 

परिशिष्ट

नाम राज्यक्षेत्र
१२. उत्तर प्रदेश
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ में ठीक पहले या तो संयुक्त प्रान्त नाम से ज्ञात प्रान्त में समाविष्ट थे या इस प्रकार प्रशासित थे मानो कि वे उम प्रान्त के भाग रहे हों।
१३. पश्चिमी बंगाल
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ मे ठीक पहले या तो पश्चिमी बंगाल प्रान्त में समाविष्ट थे या इस प्रकार प्रशासित थे मानो कि वे उस प्रान्त के भाग रहे हों तथा चन्द्र नगर का राज्य- क्षेत्र जैसा कि वह चन्द्र नगर (विलयन) अधिनियम, १९५४, की धारा (२) के खंड (ग) में परिभापित है और वे राज्यक्षेत्र भी, जो बिहार और पश्चिमी बंगाल (राज्यक्षेत्रों का हस्तान्तरण) अधिनियम, १९५६ की धाग ३ की उपधारा (१) में उल्लिखित हैं।
१४. जम्मू तथा कश्मोर वह राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले जम्मू तथा कश्मीर के देशी राज्य में समाविष्ट था।

२. संघ राज्य क्षेत्र

नाम राज्यक्षेत्र
१. दिल्ली
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले मुख्यायुक्त के दिल्ली प्रान्त में समाविष्ट थे।
२. हिमाचल प्रदेश
वे राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ मे ठीक पहले इस प्रकार प्रशासित थे मानो कि वे हिमाचल प्रदेश और बिलासपुर के नामों से मुख्यायुक्त के प्रान्त रहे हों।
३. मनिपुर
वह राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले इस प्रकार प्रशासित था मानो कि वह मनिपुर के नाम से मुख्यायुक्त का प्रान्त रहा हो।
४. त्रिपुरा
वह राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ मे ठीक पहले इस प्रकार प्रशासित था मानो कि वह त्रिपुरा के नाम से मुख्यायुक्त का प्रान्त रहा हो।
५. अन्डमान और निकोबार द्वीप
वह राज्यक्षेत्र जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले अन्डमान और निकोबार द्वीप के मुख्यायुक्त के प्रान्त में समाविष्ट था।
[ २०५ ]
नाम राज्यक्षेत्र
६. लक्कादीव, मिनिकाय और अमीनदीवी द्वीप
वह राज्यक्षेत्र जो राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की धारा ६ में उल्लिखित है।

अनुच्छेद ८० और
अतुर्थ अनुसूची का
संशोधन
३. (१) संविधान के अनुच्छेद ८० में—

(क) खंड (१) के उपखंड (ख) में "राज्यों के" शब्दों के पश्चात "और संघ राज्यक्षेत्रों के" शब्द अन्तःस्थापित किये जाएंगे,
(ख) खंड (२) में “राज्यों के" शब्दों के पश्चात् "और संघ राज्यक्षेत्रों के" शब्द अन्तःस्थापित किये जाएंगे,
(ग) खंड (४) में "प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख) में उल्लिखित' शब्द लुप्त कर दिये जायंगे, और
(घ) खंड (५) में "प्रयम अनुसूची के भाग (ग) में उल्लिखित राज्यों" शब्दों और अक्षरों के स्थान पर “संघ राज्यक्षेत्रों" शब्द रख दिये जायेंगे।

(२) संविधान की चतुर्थ अनुसूची के स्थान में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ और बिहार और पश्चिमी बंगाल (गज्यक्षेत्र हस्तान्तरण) अधिनियम, १९५६ द्वारा यथा संशोधित निम्नलिखिन अनुसूची रख दी जायेगी, अर्थात्—

चतुर्थ अनुसूची

[अनुच्छेद ८ (१) और ८० (२)]
राज्य-सभा में के स्थानों का बटवारा

निम्न सारणी के प्रथम स्तम्भ में उल्लिखित प्रत्येक राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को यथास्थिति उतने स्थान बांट में दिये जायेंगे जितने कि उसके दूसरे स्तम्भ में उस राज्य या उस संघ राज्यक्षेत्र के सामने उल्लिखित हैं।

सारणी

१. आन्ध्र प्रदेश
......१८
२. आसाम
......०७
३. बिहार
......२२
४. मुम्बई
......२७
५. केरल
......०९
६. मध्य प्रदेश
......१६
७. मद्रास
......१७
८. मैसूर
......१२
९. उड़ीसा
......१०
१०. पंजाब
......११
११. राजस्थान
......१०
१२. उत्तर प्रदेश
......३४
१३. पश्चिमी बंगाल
......१६
१४. जम्मू तथा कश्मीर
......०४
१५. दिल्ली
......०३
१६. हिमाचल प्रदेश
......०२
१७. मनिपुर
......०१
१८. त्रिपुरा
......०१

कुल.२२०

[ २०६ ]

अनुच्छेद ८१ और
८२ के स्थानों में
नये अनच्छेद रखना
४. संविधान के अनुच्छेद ८१ और ८२ के स्थानों में निम्नलिखित अनुच्छेद रख दिये जाएंगे, अर्थात्—

 

लोक सभा की
रचना
"८१. (१) अनुच्छेद ३३१ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए लोक सभा—

(क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनधिक सदस्यों, और
(ख) संघ गज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिये ऐसी रीति में, जैसी कि संसद् विधि द्वारा उपबन्धित करे, चुने हुए बीस से अनधिक सदस्यों से मिल कर बनेगी।

(२) खड (१) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए—

(क) प्रत्येक राज्य के लिये लोक सभा में स्थानों की संख्या की बांट ऐसी रीति मे होगी कि उस संख्या से राज्य की जनसंख्या का अनुपात समस्त राज्यों के लिये यथागाध्य एक ही होगा, और।
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति में विभा-जित किया जायेगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या मे अनुपात समस्त राज्य में यथानाध्य एक ही होगा।

(३) इस अनुच्छेद में "जनसंख्या" पद से ऐसी अन्तिम पूर्वगत जनगणना से, जिसके नत्मान्धी आकडे प्रकाशित हो चुके है, निश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है।

प्रत्येक जनगणना के
पश्चात् पुनः
समायोजन
८२. प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा मे राज्यों को स्थानों के आवटन और प्रत्येक गज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रो में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति मे पुनः समायोजन किया जायेगा जैसा कि संसद विधि द्वारा निर्धारित करे;

परन्तु ऐसे पुनः समायोजन से लोकसभा में के प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक कि उस समय वर्तमान सदन का विघटन न हो जाये।"

अनुच्छेद १३१ का
संशोधन
५. सविधान के अनच्छेद १३१ में परन्तुक के स्थान में निम्नलिखित परन्तुक रख दिया जाएगा, अर्थात्—

"परन्तु उक्त क्षेत्राधिकार का विस्तार उस विवाद पर न होगा जो किसी ऐसी मंधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या अन्य तत्सम लिखत से, जो इस संविधान के प्रारम्भ से पहले की गयी या निष्पादित थी तथा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात् प्रवर्तन में है, या जो उपबन्ध करती है कि वैसे क्षेत्राधिकार का विस्तार ऐसे विवाद पर न होगा, पैदा हुआ है।"

अनुच्छेद १५३ का
संशोधन
६. सविधान के अनुच्छेद १५३ में निम्नलिखित परन्तुक जोड़ दिया जाएगा, अर्थात्—

"परन्तु इस अनच्छेद में की कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त करने से नहीं रोकेगी।"

अनुच्छेद १५८ का
संशोधन
७. सविधान के अनुच्छेद १५८ के खंड (३) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अन्तःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—

"(३क) जहां एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहां उस राज्यपाल को देय उपलब्धियां और भत्तै उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आबंटित किये जाएंगे जैसा कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा निर्धारित करे।" [ २०७ ] 

अनुच्छेद १६८ का
संशोधन
८. (१) संविधान के अनुच्छेद १६८ के खंड (१) में, उपखंड (क) में, "मद्रास" शब्द के पश्चात् "मैसूर" शब्द अंतःस्थापित किया जाएगा।

(२) उक्त उपखंड में, ऐसी तारीख से, जिसे राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा नियत करे, "मुम्बई" शब्द के बाद नियुक्त करे, "मध्य प्रदेश" शब्द अंतःस्थापित किये जाएंगा।

अनुच्छेद १७० के
स्थान पर नया
अनुच्छेद रखना
९. संविधान के अनुच्छेद १७० के लिए, निम्नलिखित अनुच्छेद स्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌—

 

विधान सभा की
संरचना
"१७०. (१) अनुच्छेद ३३३ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य की विधान सभा राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए पांच सौ से अधिक और कम से कम साठ सदस्यों से मिलकर बनेगी :

(२) खंड (१) के प्रयोजनों के लिए, प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसे आबंटित स्थानों की संख्या के बीच का अनुपात, पूरे राज्य में यथासाध्य एक समान होगा।

व्याख्या—इस खंड में, "जनसंख्या" शब्द से पिछली पूर्ववर्ती जनगणना में निर्धारित, जिसके तत्संबंधी प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं, जनसंख्या अभिप्रेत है।

(३) प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर, प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुनर्गठित किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे:

परंतु इस तरह के पुनर्समायोजन से तत्कालीन विधानसभा के मौजूद रहने तक कोई प्रतिनिधित्व प्रभावित नहीं होगा जब तक कि विधान सभा का विघटन न हो जाय।

अनुच्छेद १७१ का
संशोधन
१०. संविधान के अनुच्छेद १७१ के खंड (१) में, "एक-चौथाई" शब्द के स्थान पर "एक-तिहाई" शब्द रखा जाएगा।

अनुच्छेद २१६ का
संशोधन
११. संविधान के अनुच्छेद २१२ में, परंतुक को हटा दिया जाएगा।

 

अनुच्छेद २१७ का
संशोधन
१२. संविधान के अनुच्छेद २१७ में, खंड (१) में "पद धारण करेगा जब तक कि वह साठ वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित शब्द और अंक रखे जाएंगे, अर्थात्‌—

"अपर या कार्यवाहक न्यायाधीश के मामले में अनुच्छेद २२४ में किए गए प्रावधान के अनुसार, और किसी अन्य मामले में, जब तक कि वह साठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक पद धारण करेगा"।

अनुच्छेद २२० के
स्थान पर नया
अनुच्छेद रखना
१३. संविधान के अनुच्छेद २२० के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद प्रतिस्थापित कर दिया जायेगा अर्थात्‌—

 

स्थाई न्यायाधीश
होने के पश्चात्‌
विधिवृत्ति पर
बन्धन
"२२०, कोई भी व्यक्ति, जिसने इस संविधान के लागू होने के बाद, उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पद धारण किया है, सर्वोच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों को छोड़कर भारत में किसी भी न्यायालय में या किसी प्राधिकरण के समक्ष दलील नहीं देगा या कार्य नहीं करेगा।